सम्मानित साथियों,
अब जबकि AISCSA द्वारा शेट्टी आयोग की सिफारिशों को लागू न करने के प्रकरण को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष ले गया है तो हमें यह जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से है कि आदेश दिनांक 07.10.2009 एवं 16.03.2015 से हमें क्या फायदे मिलने है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश 16.03.2015 में वर्णित अवधि तक उ.प्र.सरकार द्वारा अनुपालन न करने पर विद्वान अधिवक्ता श्री संजय पारीखजी द्वारा उ.प्र.सरकार को अवमानना नोटिस भेजी गयी। नोटिस पीरियड समाप्त होने के उपरांत 16.03.2015 के आदेश के प्रकाश में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 7.10.2009 का अनुपालन कराये जाने हेतु इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल रिट संख्या 43997/2011 में सप्लीमेंट्री फाइल कर दिनांक 1.1.2006 से संशोधित वेतनमान देने की याचना की गयी।
AISCSA के गठन के पश्चात जब मैं श्री संजय पारीखजी से मिलकर पूरे देश में *एक राष्ट्र-एक न्यायपालिका-एक समान वेतनमान* की संकल्पना पर रिट फाइल करने और शेट्टी आयोग की अनुशंसा पूर्णरूपेण लागू न होने पर यू.पी. के लिए अवमानना वाद फाइल करने एवं द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग (रेड्डी आयोग) में भी अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों को शामिल कराने हेतु रिट/आई.ए. फाइल करने लेकर वृहद चर्चा हुई। चर्चा पश्चात श्री पारीखजी ने इस आधार पर AISCSA की ओर से वकालत करने से मना कर दिया क्योंकि वो दूसरे संगठन के वकील थे।
बहरहाल AISCSA अपने प्रयासों के लिए दृढ़ संकल्पित थी इसलिए एक अन्य विद्वान अधिवक्ता के माध्यम से उ.प्र.के लिए अवमानना वाद दाखिल हो चुकी है,रेड्डी आयोग में अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों को शामिल किये जाने हेतु आई.ए. सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में है
उ.प्र.हेतु दाखिल अवमानना वाद 1022/1989 में ही कनेक्ट होनी है।
एक रोचक तथ्य यह भी है कि जजेश एशोसिएशन की अधिवक्ता ने बिहार एशोसिएशन द्वारा दाखिल आई.ए.67515/2017 में जजेश एशोसिएशन की अधिवक्ता के रूप में दाखिल स्टेटमेंट ऑफ आब्जेक्शन में कर्मचारियों को रेड्डी आयोग में शामिल किये जाने का विरोध किया था।
अंत मे,
एक प्रश्न देश के समस्त जिला न्यायालय मे कार्यरत लेखानुभाग के कर्मचारियों से …
1. *1.4.2003 को मेरा मूल वेतन 3050/था,शेट्टी का लाभ मिला और यह मूल वेतन 3125/- हो गया।मान लिजिये कि 31.12.2005 को मेरा मूल वेतन 3275/- था तो छठे वेतन आयोग में मेरा नया वेतनमान इसी 3275/- के आधार पर पुनरीक्षित किया गया जायेगा या तद्नुसार नये पुनरीक्षित मूल वेतन पर भी मुझे एक अतिरिक्त इंक्रीमेंट का लाभ दिया गया ?*
2. *क्या एक अतिरिक्त इंक्रीमेंट का लाभ सांतवे वेतन आयोग में भी मुझे मिलेगा या नहीं ?*
यदि 1 व 2 का *जवाब नहीं है तो इसका अर्थ यह होगा कि शेट्टी के तहत देय लाभ मुझे सिर्फ पांचवें वेतन आयोग में ही मिला!!*
हां या नहीं ?
दुर्भाग्य यह है कि वास्तविक प्रश्नों का सामना करने या संतुष्टि प्रदान करने वाला उत्तर वो भी नहीं देते जो यह दावा करते हैं कि हमने पूरे देश में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 16.03.2015 का आदेश लागू करा दिया है !
सम्पूर्ण तथ्य आप सभी के समक्ष इस आशा से प्रस्तुत कर रहा हूँ कि आप स्वयं परखिये कि आपकी लड़ाई लड़ कौन रहा है?
कुछ लोग मुझपे हँस सकते है,कुछ मजाक उड़ा सकते हैं पर ऐसे लोगों से मेरा अनुरोध है कि *1.1.2006 और 1.1.2016 से प्राप्त हो सकने वाले केवल एक इंक्रीमेंट का एरियर की गणना करके देंखे कि उनका कितना नुकसान हुआ है*
आपका
डा.अनुराग श्रीवास्तव
राष्ट्रीय अध्यक्ष
अखिल भारतीय अधीनस्थ न्यायालय कर्मचारी संघ(AISCSA)
अब जबकि AISCSA द्वारा शेट्टी आयोग की सिफारिशों को लागू न करने के प्रकरण को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष ले गया है तो हमें यह जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से है कि आदेश दिनांक 07.10.2009 एवं 16.03.2015 से हमें क्या फायदे मिलने है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश 16.03.2015 में वर्णित अवधि तक उ.प्र.सरकार द्वारा अनुपालन न करने पर विद्वान अधिवक्ता श्री संजय पारीखजी द्वारा उ.प्र.सरकार को अवमानना नोटिस भेजी गयी। नोटिस पीरियड समाप्त होने के उपरांत 16.03.2015 के आदेश के प्रकाश में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 7.10.2009 का अनुपालन कराये जाने हेतु इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल रिट संख्या 43997/2011 में सप्लीमेंट्री फाइल कर दिनांक 1.1.2006 से संशोधित वेतनमान देने की याचना की गयी।
AISCSA के गठन के पश्चात जब मैं श्री संजय पारीखजी से मिलकर पूरे देश में *एक राष्ट्र-एक न्यायपालिका-एक समान वेतनमान* की संकल्पना पर रिट फाइल करने और शेट्टी आयोग की अनुशंसा पूर्णरूपेण लागू न होने पर यू.पी. के लिए अवमानना वाद फाइल करने एवं द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग (रेड्डी आयोग) में भी अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों को शामिल कराने हेतु रिट/आई.ए. फाइल करने लेकर वृहद चर्चा हुई। चर्चा पश्चात श्री पारीखजी ने इस आधार पर AISCSA की ओर से वकालत करने से मना कर दिया क्योंकि वो दूसरे संगठन के वकील थे।
बहरहाल AISCSA अपने प्रयासों के लिए दृढ़ संकल्पित थी इसलिए एक अन्य विद्वान अधिवक्ता के माध्यम से उ.प्र.के लिए अवमानना वाद दाखिल हो चुकी है,रेड्डी आयोग में अधीनस्थ न्यायालय के कर्मचारियों को शामिल किये जाने हेतु आई.ए. सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में है
उ.प्र.हेतु दाखिल अवमानना वाद 1022/1989 में ही कनेक्ट होनी है।
एक रोचक तथ्य यह भी है कि जजेश एशोसिएशन की अधिवक्ता ने बिहार एशोसिएशन द्वारा दाखिल आई.ए.67515/2017 में जजेश एशोसिएशन की अधिवक्ता के रूप में दाखिल स्टेटमेंट ऑफ आब्जेक्शन में कर्मचारियों को रेड्डी आयोग में शामिल किये जाने का विरोध किया था।
अंत मे,
एक प्रश्न देश के समस्त जिला न्यायालय मे कार्यरत लेखानुभाग के कर्मचारियों से …
1. *1.4.2003 को मेरा मूल वेतन 3050/था,शेट्टी का लाभ मिला और यह मूल वेतन 3125/- हो गया।मान लिजिये कि 31.12.2005 को मेरा मूल वेतन 3275/- था तो छठे वेतन आयोग में मेरा नया वेतनमान इसी 3275/- के आधार पर पुनरीक्षित किया गया जायेगा या तद्नुसार नये पुनरीक्षित मूल वेतन पर भी मुझे एक अतिरिक्त इंक्रीमेंट का लाभ दिया गया ?*
2. *क्या एक अतिरिक्त इंक्रीमेंट का लाभ सांतवे वेतन आयोग में भी मुझे मिलेगा या नहीं ?*
यदि 1 व 2 का *जवाब नहीं है तो इसका अर्थ यह होगा कि शेट्टी के तहत देय लाभ मुझे सिर्फ पांचवें वेतन आयोग में ही मिला!!*
हां या नहीं ?
दुर्भाग्य यह है कि वास्तविक प्रश्नों का सामना करने या संतुष्टि प्रदान करने वाला उत्तर वो भी नहीं देते जो यह दावा करते हैं कि हमने पूरे देश में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 16.03.2015 का आदेश लागू करा दिया है !
सम्पूर्ण तथ्य आप सभी के समक्ष इस आशा से प्रस्तुत कर रहा हूँ कि आप स्वयं परखिये कि आपकी लड़ाई लड़ कौन रहा है?
कुछ लोग मुझपे हँस सकते है,कुछ मजाक उड़ा सकते हैं पर ऐसे लोगों से मेरा अनुरोध है कि *1.1.2006 और 1.1.2016 से प्राप्त हो सकने वाले केवल एक इंक्रीमेंट का एरियर की गणना करके देंखे कि उनका कितना नुकसान हुआ है*
आपका
डा.अनुराग श्रीवास्तव
राष्ट्रीय अध्यक्ष
अखिल भारतीय अधीनस्थ न्यायालय कर्मचारी संघ(AISCSA)